EK SAFAR
मैं
थक गया हूँ, चलते चलते अंजनी राह पर
बैठना चाहता हूँ मैं, मद्धम नाज़ुक सी छाँव पर
कर ले आराम मुझ पर, कह रही मुझसे मिट्टी ये
तुझे अपने घर रखूँगा
आगे बढ़ा मैं, मुस्कुरा कर
कहकर ये
मैं पथिक हूँ, पथिक ही रहूँगा ||
सफर शुरू हुआ |
लम्बा बहुत हैं
कठीन बड़ा ये रास्ता हैं ||
कुछ ही ज़िन्दगी चला हूँ,
समीप दिखती मंज़िल हैं दूर अभी,
कितने मिटटी हो गए इन राहों पर
मगर इन राहों पर चलने वाले हैं शूर सभी ||
जगी जभी तृषडा मुझको, हाथ लगी प्यास की छोटी पयली
मिली मंज़िल जभी राहों पर,
मिली मंज़िल वो मृग-त्रिषडा वाली ||
हर पायस मिटा दूंगा तेरी
कह रहा हैं मुझसे घन मेघ ये
काली ठंडी छाया सर पर तेरे हर पल रखूँगा
आगे बढ़ा मैं, मुस्कुरा कर
कहकर ये
मैं पथिक हूँ, पथिक ही रहूँगा ||
मंज़िल से थोड़ा दूर |
आगे और कितना जाना हैं
अंदाजा नहीं कितना समय बीत गया हैं ||
पीछे छोड़े हैं मैंने अपने चाहनेवाले
पहुंचने के लिए यहाँ, जाने कितने रिश्ते नापे,
लौटूंगा मैं फिर उस आँगन में,
इस आश में, कोई अभी खिड़की से झांकें ||
क्यों आया मैं दूर इतनी
मिली मुझे बस एक हाथ एक हथेली,
खुद को बता रहा हूँ मैं
शायद मंज़िल खेले मुझसे आँख मिचौली ||
ठंडा रखूँगा मैं तुझको
कह रही हैं मुझसे बहती हवा ये
हो सवार मुझ पर, झट चलूँगा ||
हो सवार मुझ पर, झट चलूँगा ||
आगे बढ़ा मैं, मुस्कुरा कर
कहकर ये
मैं पथिक हूँ, पथिक ही रहूँगा ||
![]() |
आखिरी मंज़िल का सुकून |
राह अभी पूरी बाकी हैं
मंज़िल मिली नहीं पर, ये मेरी आखिरी मंज़िल हैं ||
सुहाने सफर पर मिले मुझको राग विविध
चलते-चलते बांटे हैं कितने स्वर मैंने,
बैठ गया हूँ अब थककर, मांग रहा हूँ माफ़ी उनसे
मंज़िल मिलेगी मुझको, देखे जिसने ये सपने ||
झुक कर प्रणाम किया राह को
मुझको मिली फिर राह नयी,
जिसके लिए सफर किया मैंने
पीछे पीछे चली हमेसा साथ मेरे मंज़िल वही ||
हर इच्छा समापत होगी तेरी
कह रहा हैं मुझसे शैंया ये
तू सफर न भी कर, तो भी तेरे साथ चलूँगा ||
साथ मेरे हैं वो, मुस्कुरा कर
कहकर ये
तू भी पथिक, मैं भी पथिक
अब हमेशा तेरे संग चलूँगा ||
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