Hum se Tum tak

उसके पास मेरे लिए वक़्त नहीं था और आज वक़्त ये आया की कोई और मेरे साथ हैं । 
वो मुझे हाथ नहीं पकड़ने देता था और आज ये शक़्श सबके सामने मेरा हाथ पकड़ने को तैयार है। 
वो कभी मुझे एक प्रॉमिस न दे सका और ये आज मेरे साथ सात वचन करने को तैयार है। 

अनजान है, 
पर मुझे एक नज़र में पसंद कर लिया और जिसका इंतज़ार मेरी नज़र को था वो मेरे घरवालों से नज़रें बचाता हैं। कैसे भरोसा करू इसपे जिसको मैं शायद पहली बार मिलूंगी, जिसको शायद मेरी आदतें नहीं पसंद, जिसको शायद सिर्फ साथ चाहिये किसीका और न जाने कितने ऐसी शायद हैं मेरे दिमाग में। पर कैसे उसको मन करू जिसने मेरे पापा की बात मान ली, जिसने मेरे माँ में मेरी झलक दख कर मेरे लिए हां करदी। 

अजीब सी उलझन चल ही रही थी की तभी आवाज आयी। ... अब दूल्हा दुल्हन खड़े हो जाये। अचानक मैं अपनी सोच से बहार निकली और अब एक नयी सोच के साथ खड़ी हुयी।  नहीं पता की अब क्या होगा, न जाने ये शक़्श कैसे होगा। पर अब वचन सात नहीं चोदाह  (14 ) होंगी। 

सात होंगे -जो दुनियाँ के सामने होंगे 
और सात होंगे - जो मै दूंगी खुद को

पहला वचन - अब मैं हर उस शक़्श को भूल जाउंगी जो मुझे नयी ज़िन्दगी मे जाने से रोकता रहा। मैं कब तक उसे  भूल पाऊँगी ये नहीं पता पर, अब वो कभी याद नहीं आएगा ये मेरा पहला वचन है। 

दूसरा वचन -  मैं अब हर पल खुद को बेहतर करूँगी। जिसने मेरे तन को छुये बिना मुझे पसंद किया, अब मेरी हर कोशिश उसके मन को समझने की होगी। 

तीसरा वचन - मैं ये वचन देती हु कि अब खुशिया मेरी नहीं, हमारी होगी। किस काबिल हूँ मैं ये नहीं पता, पर सब कुछ भूल कर अपने रिश्ते को मजबूत करुँगी। 

चौथा वचन - जिसने मेरे पिता का सम्मान किया उसे कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी। जिसने मुझे बिना जाचे परखे अपनाया उसके जुड़े हर व्यक्ति को अपना बनाना मेरी जिम्मेंदारी है। 

पाँचवा वचन - जैसी आप चाहते हो शायद मैं वैसी बिलकुल भी नहीं। पर मैं ये वचन देती हु की हर परिश्थिति में आपके साथ रहूंगी।

छठा वचन - मैंने जो गलतियाँ की , जो झूठ बोले वो  एकदिन मेरे सामने फिर आएंगे। इसलिए मैं अपने हर गलती के लिए आपसे सॉरी और आपको वचन देती हूँ कि अब मेरे जीवन की हर बात,जो बीत गयी या जो आएगी ,मैं आपको बिना डरे बाटूंगी। फिर चाहे मुझे माफ़ी मिले या नहीं। 

"सातवा वचन मैं दे सकता हु " - एक जानी पहचानी पर अनजानी आवाजें ने मुझे बोला। नज़रे झुकी हुयी अचानक  मानो पलकों से किसी पहाड़ को हटाया हो। कुछ नज़र नहीं आ रहा था, सब सामने था फिर भी। वो आवाज फिर हुई - " क्या सातवा वचन मैं दे सकता हूँ" -तुमने क्या सोचा मुझे कुछ  पता  नहीं चलेगा कि तुमने कितने वचन मुझे दिए ,कितने कीमती आँसू इन काली मासूम आँखों से गिराए हैं। 

मैं  समझ नहीं पा रही थी की ये क्या हो रहा हैं। आखिर इससे कैसे पता की मैं'क्या बोल रही हु और मेरे मन में क्या चल रहा हैं। अचानक सब और शांति क्यू होगई। तभी उसने मेरे हाथ को जोर से दबाया, अपनी और खींचा। मैं सेहेर, दिल की धड़कन और आग की धधक एक जैसी होगई। मेरे आँखों से अचानक आंसू की एक माला-सी निकली। कोई उसे रोक नहीं रहा था,  न जाने ये क्या हो रहा था। 

सातवा वचन  हैं की अब तुम कभी खुद से दूर नहीं करूँगा। 

बस उसकी ये बात मेरे दिल तक उतार गई। ये वही था जो मुझे वक़्त नहीं देता था , जो शायद मुझे छोड़ गया था ,पर अचानक ये कैसे हुआ और कब- मुझे नहीं पता।  मैने उसे फिर याद कराया की मेरी आँखें.... तभी उसने अपने हाथ मेरे होंठो पे रखे और कहा - "तेरा साथ चाहिए बस -देखने के लिए भी और ज़िन्दगी के लिए।  तुम से हम तक सफर तय कर लिया हैं , हम से तुम तक का सफर तय करेंगे अब।"

बस अब मेरे दिल में सुकून और होंठों पे हां थी - अब हम से तुम तक का सफर तय करने की।  
  


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